जोशीमठ से 82 KM दूर कर्णप्रयाग में भी बिगड़े हालात! दर्जनों मकानों में दरारें, लोग घर छोड़ने को मजबूर
Uttarakhand | Cracks in Karnaprayag, 82 km from Joshimath, are as wide and scary
जोशीमठ से 80 किलो मीटर दूर बसा है कर्णप्रयाग, जहां की स्थिति भी बहुत दुखद और डरावनी हो गई है. कर्ण प्रयाग के बहुगुणा नगर में 200 लोग रहते हैं, लेकिन घुट-घुट कर जीने को मजबूर हो गए हैं. करीब 40 मकान ऐसे हैं, जिनकी दीवारें दरक गईं हैं और जमीन धंस गई है. इन लोगों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.
दरअसल, ऊंचाई पर बने मकानों की स्थिति बेहद खराब है. इसी बहुगुणा नगर में रहने वाली 80 साल की बुजुर्ग बसंती देवी पूरी तरह से हताश और निराश हैं. वह कहती हैं कि उनको मालूम है कि उनका घर गिर जायेगा और उसमें दबने से मौत भी हो जाएगी. लेकिन, वो यहां से कहीं नहीं जा सकतीं, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है. बसंती देवी के परिवार में उनके साथ उनका देवर और उसका परिवार है.
बसंती देवी को साफ दिखई नहीं देता, फिर भी दीवारों में आई दरारों को वो हाथ से छू-छू कर टटोलती हैं. ऐसे ही यहां पर कई परिवार हैं, जो अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ रह रहे हैं. हैरत में डालने वाली बात यह है कि यहां के खतरनाक मकानों का चिह्नांकन भी नहीं किया है, जैसा कि जोशीमठ में हुआ है. यहां के लोगों का कहना है कि बारिश में प्रशासन इसे छोड़ने के लिए कहता है और बारिश के बाद फिर लोग वापस आ जाते हैं और उसी में रहने लगते हैं.
‘मेरे बेटी का क्या होगा?’
वहीं, नीतू रोते हुए बताती हैं कि उनका भी घर टूट रहा है. अगर उन्हें कुछ हो जाएगा तो उनकी 11 साल की बेटी का क्या होगा? उदास भाव से फिर रोने लगती है. वहां ऊपर कई मकान टूटे पड़े हैं. वो अगर नीचे की ओर गिरे तो कई और उनके जद में आ जाएंगे. वहीं पर नीचे सरकारी इमारतें भी बनी हैं. उनमें भी दरारें आ गई हैं. वहां के लोगों का कहना है चारधाम की जो सड़क बनी है, उसकी वजह से यह सब हुआ है.
इतना ही नहीं, लोगों का कहना है कि वहां पर मंडी समिति की नई बिल्डिंग बनने के बाद से घरों में ये दरारें आने शुरू हुई हैं. दरार आने के बाद लोगों ने घरों में प्लास्टर करवाया, फिर भी उससे कुछ नहीं हुआ. साल 2021 से घरों में दरारें दिख रही हैं. प्लास्टर करान के बावजूद सबकुछ वैसा ही हो गया है.
‘ड्रेनेज की कोई व्यवस्था नहीं है’
स्थानीय निवासी आशीष थपलियाल का कहना है कि लोग जानते हैं यहां रहना खतरे से खाली नहीं है, फिर भी यहीं रह रहे हैं. आखिर जाएं तो जाएं कहां? उनके लिए प्रशासन की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गई है. इस शहर में कोई भी ड्रेनेज की व्यवस्था नहीं है. एक घर का पानी दूसरे घर में रिसता है. कुछ लोगों ने अपना घर छोड़ दिया है. वो यहां से चले गए हैं. कुछ ऐसे भी घर यहां पर हैं, जिनकी दीवारों से आरपार देखा जा सकता है. घर धंसते चले जा रहे हैं. दरारों से छत और फर्श दोनों फट गए हैं.
‘संघर्ष समिति बनाई है’
कर्णप्रयाग के लोग इतने परेशान हैं कि उन्हें आज ही संघर्ष समिति बनानी पड़ी. उनका कहना है कि बिना धरना के शासन के लोग सुनने वाले नहीं हैं. जोशी मठ के लोगों की तरह हम लोग भी आंदोलन करेंगे. बिना आंदोलन के बात नहीं बनने वाली है. लोगों का कहना है कि शिकायत करने पर पटवारी आता है और नाप लेकर चला जाता है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती. संघर्ष समिति की पहली बैठक में बुजुर्ग से लेकर सभी शामिल हुए. सबने एक सुर में कहा कि आंदोलन करना होगा तभी बात बनेगी.
‘स्थानीय प्रशासन भी बेपरवाह’
यहां के लोगों का कहना है कि न तो हमारी सुध यहां विधायक लेते हैं और न ही यहां का लोकल प्रशासन. कोई कभी आता भी नहीं है. हम अपनी परेशानी में परेशान है, लेकिन कोई पूछने वाला नहीं है. सबको बस जोशीमठ पर ही ध्यान है.
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