नीतीश सरकार ने अपने स्तर पर राज्य में जनगणना करने का फैसला किया था, इसके विरोध में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसपर रोक लगाने की मांग की थी।
‘We Can’t Stop Govt From Taking A Decision’ : Supreme Court Refuses To Restrain Bihar Govt From Acting On Caste-Survey Data
मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। कोर्ट ने बिहार के जातीय जनगणना के आंकड़े पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है। दरअसल, नीतीश सरकार ने अपने स्तर पर राज्य में जनगणना करने का फैसला किया था, इसके विरोध में मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इसपर रोक लगाने की मांग की थी। केंद्र ने दलील दी थी कि जनगणना पर सभी तरह के फैसले लेने का अधिकार केंद्र के पास है। राज्य की सरकारें इस संबंध में कोई फैसला नहीं ले सकती।
सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि बिहार सरकार ने डेटा एकत्र कर लिया है। डेटा को जारी भी कर दिया गया है। हाई कोर्ट ने मामले में विस्तृत आदेश जारी किया था। याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि मामले पेंडिंग थे और इस बीच सरकार ने डेटा जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण में एकत्र किए गए डेटा को अपलोड करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
दरअसल, लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले, सर्वेक्षण से पता चला कि अन्य पिछड़ा वर्ग और उनके बीच अत्यंत पिछड़ा वर्ग राज्य की आबादी का 63% है, जिसमें ईबीसी 36% है जबकि ओबीसी 27।13% है। बिहार सरकार ने तर्क दिया था कि यह एक “सामाजिक सर्वेक्षण” था। राज्य सरकार के वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि सर्वेक्षण के आंकड़ों का इस्तेमाल कल्याणकारी उपायों को तैयार करने के लिए किया जाएगा।
पटना हाई कोर्ट ने 1 अगस्त को सर्वेक्षण की वैधता को बरकरार रखा था। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि बिहार के पास ऐसा सर्वेक्षण करने का कोई अधिकार नहीं है, जो केंद्र की शक्तियों को हड़पने की एक कोशिश है। उन्होंने तर्क दिया कि सर्वेक्षण ने संविधान की अनुसूची VII, जनगणना अधिनियम, 1948 और जनगणना नियम, 1990 का उल्लंघन किया है। याचिकाओं में कहा गया है कि जनगणना को संविधान की सातवीं अनुसूची में संघ सूची में शामिल किया गया था। दलीलों में तर्क दिया गया कि जून 2022 में सर्वेक्षण अधिसूचना जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3, 4 और 4ए के साथ-साथ जनगणना नियम, 1990 के नियम 3, 4 और 6ए के दायरे से बाहर थी।