नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो की मांग कर भाजपा-संघ के हिंदुत्व एजेंडे को ही बढ़ा रहे हैं केजरीवाल

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Kejriwal now trying to be Hindu: BJP on demand for Lakshmi, Ganesha images on currency notes

Kejriwal now trying to be Hindu: BJP on demand for Lakshmi, Ganesha images on currency notes
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केजरीवाल ने नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की फोटो छापने की मांग की है। जाहिर है केजरीवाल अब साफ-सुथरी और ईमानदार राजनीति का रास्ता छोड़ कर बीजेपी से हिंदुत्व पर कम्पटीनश कर रहे हैं। लेकिन क्या है देश की राजनीति के लिए शुभ संकेत है?

Kejriwal now trying to be Hindu: BJP on demand for Lakshmi, Ganesha images on currency notes

अरविंद केजरीवाल 2014 के बाद से ही सांप्रदायिक राजनीति का झंडा उठाए हुए हैं। हालांकि उनकी अपनी पार्टी के बुनियादी आधार भ्रष्टाचार को खुद ही देख सकते हैं। उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, लेकिन सांप्रदायिक एजेंडे को सामने रखने के मामले में वे बीजेपी से बाकायदा प्रतिस्पर्धा करते नजर आ रहे हैं।

बुधवार (26 अक्टूबर) को केजरीवाल ने नया शिगूफा छेड़ा है। उन्होंने कहा है कि भारतीय नोटों पर संपन्नता और समृद्धि की हिंदू देवी लक्ष्मी और ज्ञान के देवता गणेश की छवियां होनी चाहिए। जाहिर इसके पीछे उनकी कोई धार्मिक सोच नहीं बल्कि हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान हिंदू वोटों को रिझाना है। मकसद साफ है कि वे हिंदू कार्ड खेलकर अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की पार्टी बनाना चाहते हैं।

हालांकि अभी कहना जल्दबाजी होगी कि सत्ता हासिल करने की खातिर देश के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को और अधिक जहरीला बनाने से केजरीवाल और उनकी पार्टी को इस सांप्रदायिक एजेंडे से कोई राजनीतिक लाभ मिलेगा। वैसे हैरानी इस बात की है कि सिर्फ 8 साल के छोटे से राजनीतिक वक्त में ही वे भूल गए कि उनके राजनीतिक उत्थान का असली कारण क्या था।

कुछ और पुरानी बातें याद करते हैं। फरवरी 2014 में केजरीवाल ने कहा था कि भ्रष्टाचार के मुकाबले सांप्रदायिकता देश के लिए कहीं अधिक बड़ी समस्आ है। जाहिर है कि उस वक्त वह भ्रष्टाचार के नाम पर कांग्रेस को और सांप्रदायिकता के नाम पर भाजपा को निशाना बना रहे थे।

जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने बीजेपी और नरेंद्र मोदी पर खुलकर राजनीतिक प्रहार करते हुए लोगों को नरेंद्र मोदी के सांप्रदायिक अतीत की याद दिलाई और गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर 2002 के गोधरा दंगों में उनकी कथित भूमिका के आरोप लगाए।

इसके बाद 2015 में केजरीवाल दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटें जीतकर मुख्यमंत्री बन गए। उनकी इस अद्भुत सफलता का कारण उनकी साफ, ईमानदार और धर्मनिरपेक्ष छवि थी, लेकिन लगता है वे इस सबको अब भूल चुके हैं।

सिर्फ पांच साल में ही 2020 आते-आते केजरीवाल समावेशी राजनीति से भटक कर सांप्रदायिक राजनीति की तरफ झुकते चले गए। कई मौकों पर उन्होंने खुद के हिंदू होने के दिखावे सार्वजनिक तौर पर किए और खुलकर अपने हिंदू होने पर गौरव का प्रदर्शन किया। खुद को हिंदू साबित करने के लिए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर हनुमान चालीसा का पाठ तक किया।

2020 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में तो वे ऐन चुनावों के बीच अपने निर्वाचन क्षेत्र के हनुमान मंदिर में माथा टेकने तक गए।

लोगों को लगता रहा कि केजरीवाल जो कुछ कर रहे हैं वह बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति की काट है, लेकिन यही लोगों की भूल थी। उनके बयान और राजनीतिक कदम बीजेपी की काट नहीं बल्कि हिंदुत्व की प्रतिस्पर्धा हैं जो कि बीजेपी के बहुसंख्यावाद और हिंदू राष्ट्र के एजेंडे को ही आगे बढ़ाते हैं।

विकास और भ्रष्टाचार विरोधी राजनीति की कीमत पर हिंदुत्व की राजनीति में केजरीवाल के खुलकर उतरने पर काफी लोग हैरान भी हैं। यूं ही कांग्रेस पार्टी केजरीवाल को भाजपा की बी टीम नहीं कहती आई है।

हिंदुत्व की सांप्रदायिक राजनीति पर सवार बीजेपी के अति राष्ट्रवाद की तुलना में अब केजरीवाल भी पीछे नहीं रह गए हैं। उन्होंने दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ‘देशभक्ति’ पाठ्क्रम शुरु किया है। सीएए विरोधी आंदोलन और कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के मामले में किसी भी किस्म का बयान देने से बचते रहे।

उनकी सरकार ने तो दिल्ली में दिवाली के मौके परअयोध्या में बन रहे राम मंदिर का एक मॉडल भी स्थापित किया। गोवा और उत्तराखंड चुनावों के दौरान उन्होंने मतदाताओं को धार्मिक तीर्थयात्रा कराने का वादा किया था। गुजरात चुनाव को देखते हुए उनकी तीर्थ यात्रा योजना में अब सोमनाथ, द्वारका और नागेश्वर ज्योतिर्लिंग शामिल हो गए हैं।

इस तरह, केजरीवाल पिछले कुछ समय से बिना खुद को सांप्रदायिक, या बीजेपी और उनके नेताओं की तुलना में अधिक सांप्रदायिक दिखाए बिना काफी चालाकी के साथ हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं। केजरीवाल और उनकी पार्टी धर्मनिरपेक्षता के सही अर्थों को बनाए रखने में अब नाकाम साबित हो रहे हैं।

उन्होंने अब नोटों पर लक्ष्मी-गणेश की छवियां अंकित करने की प्रधानमंत्री से अपील की है। उनका बयान और अपील हिंदू भक्ति और विश्वास के प्रसार का प्रयास भर है। उन्होंने कहा कि नोटों पर दो देवताओं के चित्र होने से देश को समृद्ध होने में मदद मिलेगी।

अब तय हो गया है कि केजरीवाल ने खुद को सांप्रदायिक राजनीति के स्तर पर उतार दिया है। लोगों को उनसे भाजपा-आरएसएस के सांप्रदायिक हिंदुत्व की राजनीति के मुकाबले और उसका जवाब होने की उम्मीद थी, लेकिन यह उम्मीद अब टूट चुकी है।

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