क्या प्रधानमंत्री की घोषणा के अनुसार ‘मुफ़्त राशन’ योजना को 2028 तक बढ़ा दिया गया है? 15 नवंबर को मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद पीआईबी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति ने संदेह पैदा कर दिया है।
Free ration scheme not extended till 2028, PIB’s big revelation on Modi’s false announcement!
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कल (15 नवंबर 2023) को विधासभा चुनाव के लिए प्रचार का शोर थम गया। कल यानी 17 नवंबर को दोनों राज्यों में नई विधानसभा के लिए वोट डाले जाएंगे।
लेकिन, प्रचार खत्म होने के चंद मिनट बाद ही प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की। यह प्रेस नोट शाम 6.12 मिनट पर जारी किया गया।
इसमें कहा गया, “केंद्र सरकार, देश में गरीब लाभार्थियों के वित्तीय बोझ को कम करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) की राष्ट्रव्यापी एकरूपता एवं प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से 1 जनवरी 2023 से प्रारंभ होने वाली एक वर्ष की अवधि के लिए प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के माध्यम से अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) के परिवारों और प्राथमिकता वाले परिवारों (पीएचएच) से आने वाले लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करा रही है।”
यहां सवाल उठता है कि आखिर पीआईबी ऐसी किसी योजना के बारे में लोगों को क्यों याद दिला रही है जो बीते 11 महीने से जारी है? और, वह भी तब जब सिर्फ एक महने में यह योजना खत्म होने वाली है? क्या इसका मकसद सिर्फ लोगों को इस योजना की याद दिलाना भर था?
ऐसे में किसी भी सांसद के मन में सवाल उठेगा कि आखिर इस प्रेस रिलीज में उस बात की बिल्कुल भी जिक्र क्यों नहीं है जिसकी घोषणा प्रधानमंत्री ने की थी। आखिर हो क्या रहा है? पीआईबी के प्रेस नोट में प्रधानमंत्री की घोषणा का जिक्र तक क्यों नहीं किया गया है।?”
याद दिला दें कि इसी माह 4 नवंबर 2023 को छत्तीसगढ़ में एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया था कि देश के करीब 80 करोड़ लोगों को मिलने वाले मुफ्त राशन की योजना के अगले पांच साल यानी 2028 तक बढ़ाया जा रहा है।
उनकी यह घोषणा अखबारों की सुर्खियां बनी। और इस ऐलान के शोर में वे आवाज़े लगभग दब गईं जो इस घोषणा के समय और नीयत पर सवाल उठा रहे थे। यह चुनाव आचार संहिता का खुला उल्लंघन था। आचार संहिता में स्पष्ट है कि किसी भी नीति या प्रोजेक्ट की घोषणा कर वोटरों को रिझाने पर तब तक पाबंदी रहती है जब तक आदर्श आचार संहिता प्रभावी होती है। यह आचार संहिता चुनाव तारीखों की अधिसूचना जारी होने से लेकर मतदान होने तक प्रभावी रहती है।
लेकिन, पीआईबी द्वारा उपभोक्ता कार्य और खाद्य मंत्रालय के 15 नवंबर 2023 के प्रेस नोट से प्रधानमंत्री की इस घोषणा पर संदेह बढ़ गया है। क्या ऐसा है कि इस योजना को 2028 तक बढ़ाने का कोई फैसला केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अभी तक लिया ही नहीं है? क्या यह संभव है कि प्रधानमंत्री ने अपने ही तौर पर यह घोषणा यूं ही कर दी है, और इसके लागू होने की संभावना नहीं है।
या फिर, ऐसा है कि पीआईबी ने प्रेस नोट जारी कर प्रधानमंत्री, चुनाव आयोग और सरकार को उस फजीहत से बचा लिया है जो आदर्श चुनावी आचार संहिता का खुला उल्लंघन करने पर होती? इस घोषणा को तो अगले महीने यानी दिसंबर माह में 3 तारीख को चुनावी नतीजे आने के बाद भी किया जा सकता था।
पीआईबी के प्रेस रिलीज में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि योजना को बढाया गया है, इसमें तो सिर्फ लोगों को याद दिलाया गया है कि योजना दिसंबर 2023 तक ही है।
पीआईबी के प्रेस रिलीज में कहा गया है कि, “केंद्र प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों और प्राथमिकता वाले परिवारों (पीएचएच) लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न प्रदान कर रहा है। भारत सरकार पीएमजीकेएवाई के तहत राज्यों में निर्दिष्ट डिपो तक खाद्यान्न की खरीद, आवंटन, परिवहन और वितरण के लिए खाद्य सब्सिडी वहन कर रही है।“
वहीं मंत्रालय के बयान में थोड़ी और जानकारी दी गई है। इसमें कहा गया है कि, “केंद्र सरकार, गरीब लाभार्थियों के वित्तीय बोझ को दूर करने और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (2013) की राष्ट्रव्यापी एकरूपता और प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) वाले परिवारों को 1 जनवरी 2023 से शुरू एक वर्ष की अवधि के लिए प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत प्राथमिकता वाले घरेलू (पीएचएच) लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करा रही है।”
मंत्रालय के बयान में इस बात को स्वीकारा गया है कि यह योजना 2013 के राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत शुरु की गई है।
“राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 ग्रामीणों की 75% तक और शहरों की 50% तक आबादी को कवर करता है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार करीब 81.35 करोड़ व्यक्तियों तक पहुंचता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि समाज के सभी कमजोर और जरूरतमंद वर्गों को इसका लाभ मिले, अधिनियम की कवरेज काफी अधिक है। वर्तमान में, 81.35 करोड़ के इच्छित कवरेज के मुकाबले, 80.48 करोड़ लाभार्थियों की पहचान पीएमजीकेएवाई के तहत मुफ्त खाद्यान्न वितरण के लिए अधिनियम के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा की गई है।“
क्या इस सब पर पीआईबी की तरफ से कोई सफाई आएगी?