डॉक्टरों के अनुसार सतीश को देखकर ऐसा लग रहा था कि शायद वह कहीं से गिरे हों ऐसे में शव का पोस्टमार्टम जरूरी हो जाता है। अगर हार्ट अटैक से मौत की पुष्टि हो जाती तो पोस्टमार्टम नहीं होता।
Doctors suspect the cause of Satish Kaushik’s death, somewhere … know why the postmortem of the dead body of the actor will be done?
मशहूर अभिनेता, निर्माता, निर्देशक, कॉमेडियन और पटकथा लेखक सतीश कौशिक का बीती रात करीब 2.30 बजे गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल में निधन हो गया। 66 साल के सतीश कौशिक के शव का आज दिल्ली के दीन दयाल अस्पताल में पोस्टमॉर्टम कराया गया। अब सवाल ये उठ रहा है कि आखिर पोस्टमॉर्टम की क्या जरूरत थी? आपको बता दें, कहा जा रहा है कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई है, लेकिन फोर्टिस के डॉक्टरों को इसमें संशय है। यही वजह है कि सतीश कौशिक के शव का पोस्टमॉर्टम कराया गया।
खबरों के मुताबिक सतीश कौशिक अपने दोस्तों संग होली मनाने के लिए दिल्ली आए हुए थे। देर रात उनकी तबीयत बिगड़ी और उन्हें आनन-फानन गुरुग्राम के फोर्टिस अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। हालांकि डॉक्टरों ने परीक्षण के दौरान पाया कि जैसी उनकी हालत थी उससे हार्ट अटैक की आशंका कम लग रही थी। यही कारण है कि फोर्टिस के डॉक्टरों ने दिल्ली पुलिस को सतीश कौशिक की मृत्यु के बारे में जानकारी दी और शव के पोस्टमॉर्टम के लिए कहा। डॉक्टरों के अनुसार सतीश को देखकर ऐसा लग रहा था कि शायद वह कहीं से गिरे हों ऐसे में शव का पोस्टमॉर्टम जरूरी हो जाता है। अगर हार्ट अटैक से मौत की पुष्टि हो जाती तो पोस्टमॉर्टम नहीं होता।
सतीश कौशिक हिंदी सिनेमा के दिग्गज मशहूर अभिनेता, कॉमेडियन, स्क्रिप्ट राइटर, निर्देशक और निर्माता थे। उनका जन्म हरियाणा में हुआ था। बॉलीवुड काम शुरू करने से पहले उन्होंने थिएटर में काम किया था। सतीश कौशिक को अभिनेता के रूप में 1987 में आई फिल्म मिस्टर इंडिया के कैलेंडर से पहचान मिली थी। इसके बाद उन्होंने 1997 में दीवाना मस्ताना में पप्पू पेजर का किरदार निभाया था। इस फिल्म से उन्हें खूब शोहरत मिली थी। सतीश कौशिक को 1990 में राम लखन के लिए और 1997 में साजन चले ससुराल के लिए सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार दिया गया था।
सतीश कौशिक ने फिल्म रूप की रानी चोरों का राजा, प्रेम, हम आपके दिल में रहते हैं, हमारा दिल आपके पास है, मुझे कुछ कहना है, बधाई हो बधाई, तेरे नाम, क्योंकि, ढोल और कागज जैसी शानदार फिल्मों का निर्देशन किया।