मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए बनारस में हड़पी जा रही है जमीन

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Land is being grabbed in Banaras for PM’s favorite project

Land is being grabbed in Banaras for PM's favorite project
Land is being grabbed in Banaras for PM’s favorite project

वाराणसी में पांच साल पुराने टर्मिनल का कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है, इसके बावजूद और भी टर्मिनल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं और इसके लिए जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है।

Land is being grabbed in Banaras for PM’s favorite project

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर, 2018 में वाराणसी में गंगा नदी पर बहु-मॉडल टर्मिनल (एमएमटी) का उद्घाटन एक भव्य समारोह में किया था। तब घोषणा की गई थी कि यह टर्मिनल एक ऐसी भव्य राष्ट्रीय जलमार्ग परियोजना का हिस्सा होगा जिसके तहत हमारी प्रमुख नदियों के जरिये लाखों टन माल की ढुलाई की जाएगी। लेकिन हकीकत यह है कि 2018-19 में इस टर्मिनल से महज तीन जहाज गुजरे और 2020-21 में तो एक भी नहीं जबकि इस परियोजना के लिए विश्व बैंक से 1400 करोड़ रुपये का कर्ज लिया गया।

सरकार अब वाराणसी के लिए एक नई योजना लेकर आई है जिसके तहत इसे एक इंटर मॉडल हब बनाया जाना है जिसमें रेल, सड़क और नदी परिवहन को परस्पर जोड़ दिया जाएगा। इसके पहले कदम के रूप में ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कंपनी प्राइसवाटरहाउस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) ने वरुणा और गंगा नदियों के संगम के बीच राजघाट के पास इंटर मॉडल स्टेशन (आईएमएस) विकसित करने का प्रस्ताव रखा। पीडब्ल्यूसी द्वारा प्रस्तुत डीपीआर के अनुसार, इस स्टेशन को विकसित करने के लिए 30.8 एकड़ जमीन की जरूरत है।

वाराणसी स्थित सर्वे सेवा संघ को ध्वस्त कर दिया गया

सरकार ने महात्मा गांधी की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए स्थापित सर्व सेवा संघ की 8.7 एकड़ बेशकीमती जमीन का अधिग्रहण कर इस समस्या से कुछ हद तक निजात पा ली है। 12 अगस्त, 2023 को यूपी और रेलवे पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी ने सर्व सेवा संघ परिसर में जबरन प्रवेश कर इसकी लाइब्रेरी समेत एक दर्जन इमारतों को ध्वस्त कर दिया। शेष 21 एकड़ के लिए सरकार की नजर कृष्णमूर्ति फाउंडेशन की जमीन पर है जो सर्व सेवा संघ परिसर से सटी हुई है और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधिकार क्षेत्र में आती है।

चूंकि परियोजना स्थल राजघाट पुरातात्विक स्थल से भी सटा हुआ है जिसमें दो ऐतिहासिक स्मारक- लाल खान की एक खूबसूरत कब्र और बीएचयू के पुरातत्व विभाग द्वारा सारनाथ की तर्ज पर की गई खुदाई शामिल है, इसलिए डीपीआर में मांग की गई है कि एएसआई के आयुक्त ‘प्रतिबंधित और संरक्षित क्षेत्र के भीतर निर्माण’ की इजाजत दें। डीपीआर में कहा गया है कि यह अनुमति अगले चार महीनों के भीतर मिल जानी चाहिए।

पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को कहा गया है कि वह इलाहाबाद हाईकोर्ट से मंजूरी ले ताकि वे गंगा के उच्च बाढ़ मैदान (हाई फ्लड प्लेन) के 200 मीटर के भीतर निर्माण कर सकें। गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश पारित किया था कि गंगा के बाढ़ क्षेत्रों और विशेष रूप से उच्च बाढ़ मैदान पर किसी भी निर्माण की अनुमति नहीं दी जाएगी। वास्तव में, पिछले दो महीनों के दौरान हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में जान-माल के हुए भारी नुकसान के लिए ब्यास, अलकनंदा और भागीरथी नदी के किनारे सघन निर्माण को प्रमुख कारणों में से एक पाया गया है।

‘समाजवादी जन परिषद’ के अध्यक्ष और वाराणसी की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की रक्षा के लिए अभियान चला रहे पर्यावरण कार्यकर्ता अफलातून ने कहा कि ‘पीडब्ल्यूसी की डीपीआर से पता चलता है कि आईएमएस का बड़ा हिस्सा एचएफपी के तहत आता है। यह चौंकाने वाली बात है कि एक ब्रिटिश बहुराष्ट्रीय कंपनी एक ऐसी परियोजना पर जोर दे रही है जो वाराणसी के नाजुक पर्यावरण को खत्म कर देगी।’ डीपीआर में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड से राजघाट स्थित कछुआ अभयारण्य को जल्द से जल्द किसी दूसरी जगह पर ले जाने को कहा गया है।

जे. कृष्णमूर्ति के राजघाट अध्ययन केंद्र का इतिहास लगभग एक सदी पुराना है। यह जमीन भारत की आजादी से पहले तत्कालीन रक्षा मंत्रालय से ली गई थी। 300 एकड़ में फैले इस केंद्र ने ज्ञान और शिक्षा के प्रसार के एक प्रमुख केंद्र के तौर पर ख्याति पाई है। यह केंद्र राजघाट बेसेंट स्कूल और महिलाओं के लिए वसंत कॉलेज भी चलाता है जिसमें 3,000 छात्र हैं। यह केंद्र आसपास के गांवों के 300 छात्रों के लिए स्कूल चलाने के अलावा सामुदायिक सेवा में भी लगा हुआ है।

राजघाट अध्ययन केंद्र के रजिस्ट्रार पार्थ चटर्जी ने सर्व सेवा संघ को ध्वस्त करने के तरीके पर आशंका जताते हुए कहा, ‘हमें सरकार की ओर से भूमि अधिग्रहण का कोई औपचारिक नोटिस नहीं मिला है। पूरी स्थिति अस्पष्ट है। हमें नहीं पता कि सरकार के मन में क्या है। मैं वाराणसी के कमिश्नर कौशल राज शर्मा के संपर्क में हूं जो इस सारे काम की देखरेख कर रहे हैं।’

राजघाट अध्ययन केंद्र के प्रभारी सचिव और बीएचयू में विज्ञान विभाग के प्रमुख रह चुके भौतिक विज्ञानी पी. कृष्णा भी आशंकित हैं। वह कहते हैं, ‘हमारे कॉलेज और स्कूलों में 5,000 से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। उनके माता-पिता ऐसे किसी भी कदम को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो इस पवित्र स्थान की शांति को भंग करता हो।’ कृष्णा वर्तमान में ट्रस्टी हैं और परिसर में ही रहते हैं। लेकिन अध्ययन केंद्र के अन्य कर्मचारी खुले तौर पर कहते हैं कि सरकार ने अधिग्रहण के लिए मुख्य प्रवेश द्वार से लेकर दाहिनी ओर नदी के किनारे स्थित छात्रावास और बाईं ओर स्थित गैरेज तक की भूमि को सूचीबद्ध कर दिया है।

बीएचयू के भूगोल विभाग में सांस्कृतिक परिदृश्य और विरासत अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करने वाले प्रोफेसर राणा पी.बी. सिंह खौफजदा हैं। वह कहते हैं, ‘वाराणसी की पवित्र परंपराओं को कोई और नहीं बल्कि प्रधानमंत्री जो यहां से लोकसभा सदस्य हैं, द्वारा व्यवस्थित रूप से नष्ट किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि यहां के लोगों को पता नहीं है कि क्या हो रहा है लेकिन वे बोलने से डरते हैं। देखिए, उन्होंने विश्वनाथ कॉरिडोर कैसे बनाया। इस गलियारे को बनाने के लिए चालीस मंदिरों या उनके कुछ हिस्सों को ध्वस्त कर दिया गया और इनमें से 30 मंदिरों की मूर्तियां गायब हो गईं। हमें कुछ भी नहीं बताया गया कि ये मूर्तियां कहां हैं।’

सिंह कहते हैं, ‘ऐसा करने से बनारस और उसके आसपास के प्राचीन तीर्थ मार्ग नष्ट हो गए हैं। आज उन 50 यात्राओं में से एक भी नहीं हो रही है जो इस शहर की सांस्कृतिक धरोहर थीं। बीएचयू के विद्वान इन घटनाक्रमों के बारे में नहीं लिख रहे हैं लेकिन पश्चिम के विद्वान इस बारे में बड़े पैमाने पर लिख रहे हैं कि हमारे प्राचीन शहर के लोकाचार और चरित्र को कैसे खत्म किया जा रहा है।’

पी.बी सिंह एक और रेलवे स्टेशन बनाने पर भी सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘वाराणसी में पहले से ही तीन रेलवे स्टेशन हैं। इनमें से किसी भी एक या सभी तीन को सुधार सकते थे। एक और रेलवे स्टेशन के बहाने जमीन अधिग्रहण की चाल है। पांच साल पहले यहां मल्टी मॉडल टर्मिनल बनाया गया था जिसका कोई इस्तेमाल नहीं किया जा रहा।’

सर्व सेवा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंदन पाल ने कहा, ‘यह कहना सही नहीं है कि वाराणसी में जनता इन घटनाओं से नाराज नहीं है। हमने इस जबरन अधिग्रहण के खिलाफ 63 दिनों का सत्याग्रह किया और जनता ने हमारा समर्थन किया।’

एनजीओ- मंथन अध्ययन केंद्र के प्रमुख श्रीपाद धर्माधिकारी जलमार्ग कार्यक्रम पर बारीक नजर रखते हैं। उन्होंने इन जलमार्गों की व्यवहार्यता पर संदेह जताया है। उनका कहना है एक तो जलमार्ग बनाने और इसके रखरखाव पर अच्छा-खासा खर्च आता है और इसके अलावा इसके जरिये कितना माल ढोया जा सकेगा और कितने लोग यात्रा करेंगे, यह अपने आप में बड़ा सवाल है। धर्माधिकारी कहते हैं, ‘अगर हम आरंभ से गंतव्य तक की संपूर्ण लागत पर विचार करें तो सड़क और रेल मार्ग से माल परिवहन की लागत जलमार्ग से परिवहन की तुलना में ज्यादा किफायती है। दूसरी समस्या यह है कि जलमार्ग के रूप में इस्तेमाल के लिए नदी में पूरे साल पर्याप्त गहराई होनी चाहिए। गंगा सहित हमारी ज्यादातर नदियों के मामले में ऐसा नहीं है और इसके लिए व्यापक ड्रेजिंग की जरूरत होगी। लेकिन ड्रेजिंग एक ऐसी गतिविधि है जो नदी तल पर रहने वाले जीवों और वहां की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकती है।’

हालांकि, पीडब्ल्यूसी के डीपीआर में कहा गया है कि ‘आईएमएस एक इंटरकनेक्टिंग हब प्रदान करेगा जो यात्रियों को स्टेशन परिसर छोड़े बिना अपने परिवहन के दौरान परिवहन मोड बदलने की अनुमति देगा… यह लोगों के लिए तफरीह का भी अनुभव देगा।’

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