अवैध निर्माण के चलते बढ़ा दबाव, कहीं ‘जोशीमठ’ ना हो जाए दार्जिलिंग?

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Illegal construction, increased pressure of buildings.. May this area of ​​West Bengal become ‘Joshimath’?

Is Darjeeling on the way to ‘Joshimath’?
Is Darjeeling on the way to ‘Joshimath’?

पश्चिम बंगाल नगरपालिका अधिनियम के अनुसार उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में गैर-अचल संपत्ति निर्माण 11.5 मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि कुछ सरकारी भवनों के मामले में छूट दी गई है, जहां ऊंचाई 13 मीटर तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन यह प्रतिबंध मात्र कलम और कागज पर ही है।

Illegal construction, increased pressure of buildings.. May this area of ​​West Bengal become ‘Joshimath’?

उत्तराखंड के जोशीमठ में भूमि धंसवा का संकट उत्तर बंगाल में दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और कुरसेओंग की पहाड़ियों के लिए खतरे की घंटी बन गया है। उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में संभावित जोशीमठ जैसे संकट के पीछे मुख्य कारण बेलगाम रियल एस्टेट का विकास माना जा रहा है। रियल एस्टेट डेवलपर अक्सर पहाड़ियों में निर्माण की ऊंचाई की मान्य सीमा का उल्लंघन कर रहे हैं।

पश्चिम बंगाल नगरपालिका अधिनियम के अनुसार उत्तरी बंगाल की पहाड़ियों में गैर-अचल संपत्ति निर्माण 11.5 मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए, जबकि कुछ सरकारी भवनों के मामले में छूट दी गई है, जहां ऊंचाई 13 मीटर तक बढ़ाई जा सकती है। लेकिन यह प्रतिबंध मात्र कलम और कागज पर ही है।

हाल ही में दार्जिलिंग नगर पालिका द्वारा अकेले दार्जिलिंग शहर में 132 अवैध निर्माणों की पहचान की गई, जहां 11.5 मीटर की ऊंचाई प्रतिबंध का उल्लंघन किया गया। दार्जिलिंग नगर पालिका में आजा एडवर्डस द्वारा स्थापित हैमरो पार्टी नियंत्रित बोर्ड ने इनमें से कुछ अवैध निर्माणों को गिराने की प्रक्रिया शुरू की है। हालांकि पहाड़ियों में राजनीतिक उथल-पुथल शुरू होने के बाद हमरो पार्टी के छह निर्वाचित पार्षदों के विपक्षी अनित थापा के नेतृत्व वाले भारतीय गोरखा प्रजातांत्रिक मोर्चा (बीजीपीएम) और तृणमूल कांग्रेस गठबंधन में जाने के बाद बाद में बोर्ड का गठन किया गया।

अजय एडवर्डस के मुताबिक उनकी पार्टी को इस तरह के अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई की कीमत चुकानी पड़ी। उन्होंने कहा, हमारे कुछ पार्षदों को अवैध बिल्डरों द्वारा वित्तपोषित विपक्ष द्वारा लुभाया गया और अवैध निर्माणों के खिलाफ कार्रवाई की पूरी प्रक्रिया को रोक दिया गया। पहाड़ियों पर निर्धारित सीमा से अधिक ऊंचाई के भवनों का दबाव बढ़ रहा है। एडवर्डस ने कहा, राज्य सरकार को इस मामले को देखना होगा। अन्यथा पूरे क्षेत्र को जोशीमठ जैसे संकट का सामना करना पड़ सकता है।

गोरखालैंड टेरिटोरियल काउंसिल (जीटीए) के अध्यक्ष अनित थापा ने आरोपों को खारिज कर दिया और दावा किया कि दार्जिलिंग नगर पालिका पर विपक्षी गठबंधन के नियंत्रण के साथ, नया बोर्ड पहाड़ियों में भवन निर्माण नियमों को सख्ती से लागू करेगा। थापा ने कहा, हम दोषी बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई करने और पहाड़ियों की रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पहाड़ियों के लिए अधिकृत ऊंचाई सीमा से अधिक इमारतों के निर्माण के पीछे खतरे के बारे में बताते हुए कोलकाता स्थित सिविल इंजीनियर प्रदीप्त मित्रा ने कहा कि इमारत जितनी ऊंची होती है, उसका मिट्टी पर दबाव उतना ही अधिक होता है, जिस पर उसका निर्माण किया जाता है। मित्रा ने कहा, पहाड़ियों में मिट्टी का निर्माण बेहद ढीला है और भूकंप या बारिश जैसी प्राकृतिक अनिश्चितताओं के लिए भी कमजोर है, जो मिट्टी की संरचना को और ढीला कर देता है।

उन्होंने कहा, पहाड़ियों में रियल एस्टेट विकास को उस मिट्टी पर न्यूनतम भार या दबाव सुनिश्चित करना होगा, जिस पर इसका निर्माण किया गया है। यह तय करना होगा कि इमारतों की ऊंचाई न्यूनतम संभव स्तर पर हो। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिल्डर-प्रशासन-राजनीतिज्ञ गठजोड़ के कारण अक्सर इन ऊंचाई प्रतिबंधों का उल्लंघन किया जाता है, इसलिए त्रासदी होती है। मित्रा ने संकट के पीछे भवनों के लकड़ी के निर्माण के चलन से कंक्रीट के निर्माण की ओर स्थानांतरित होने की ओर भी इशारा किया। उन्होंने कहा, लकड़ी के निर्माण पहाड़ियों के लिए आदर्श हैं, क्योंकि इस तरह के निर्माण से मिट्टी पर भार कंक्रीट संरचनाओं की तुलना में बहुत कम पड़ता है। लेकिन शॉपिंग मॉल और होटल जैसे रियल एस्टेट का बड़े पैमाने पर विकास से मिट्टी पर दबाव बढ़ रहा है। मित्रा ने कहा इस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके अलावा यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि पर्यटन से जुड़ी पहाड़ियों में आर्थिक गतिविधियां सुचारू रूप से चलें।

कालिम्पोंग, कुरसेओंग और दार्जिलिंग क्षेत्रों के बारे में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) की एक हालिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस क्षेत्र के लगभग 17 प्रतिशत क्षेत्र भारी भूस्खलन की संभावना वाले हैं, जबकि 40 प्रतिशत मध्यम भूस्खलन की श्रेणी में हैं। केवल 43 प्रतिशत क्षेत्र हल्के भूस्खलन की संभावना वाले हैं। जिन क्षेत्रों को भारी भूस्खलन के लिए संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है, उनमें तिनधरिया, गिद्दापहाड़, गायबाड़ी, पगला झोरा और दारागांव शामिल हैं। संयोग से इन सभी स्थानों पर कुछ वर्षों में पर्यटन संबंधी गतिविधियों में कई गुना वृद्धि हुई है और इससे अचल संपत्ति के विकास और भारी वाहनों की आवाजाही में वृद्धि हुई है। भूगोल की शिक्षिका चंद्रलेखा सेन ने कहा कि क्षेत्र में टेक्टोनिक प्लेटों में हलचल व मानसून के दौरान भारी बारिश के कारण क्षेत्र में मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है, इससे परिणामस्वरूप हल्के से भारी भूस्खलन होते हैं।

सेन ने कहा, प्राकृतिक घटनाएं मानव के हाथ में नहीं हैं। लेकिन हम अधिकतम सावधानी बरत कर प्राकृति घटनाओं से होने वाले नुकसान को रोक सकते हैं। निश्चित रूप से अवैध निर्माण गतिविधियां और भारी संख्या में बड़े वाहनोंे के आवागमन से पहाड़ियों पर एहतियात बरतने में मुश्किल खड़ी होती है। अवैध निर्माण के अलावा क्षेत्र के स्थानीय लोगों ने यह भी शिकायत की है कि तीस्ता नदी पर बांध और सेवक-रंगपो रेलवे परियोजना के निर्माण कार्य भी मिट्टी पर दबाव बढ़ा रहे हैं। हालांकि स्थानीय लोगों के एक वर्ग द्वारा उठाए गए इस तर्क को कोई मानने वाला नहीं है। सेन ने बताया कि संपूर्ण पूर्वी हिमालयी क्षेत्र की मिट्टी कमजोर है। सेन ने कहा, जोशीमठ के मौजूदा संकट के बारे में शुरुआती चेतावनियां थीं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। इसी तरह की चेतावनियां दार्जिलिंग कालिम्पोंग-कुरसेओंग बेल्ट के बारे में हैं। कोई भी पहाड़ियों में आर्थिक विकास और वहां पर्यटन को बढ़ावा देने के खिलाफ नहीं है। लेकिन यह प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना किया जाना चाहिए।

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