कीर्तिका गोंजाल्विस द्वारा निर्देशित फिल्म में कट्टुनायकन जनजाति के बोम्मन और बेली के जिंदगी को दिखाया गया है, जो हाथी के अनाथ बच्चे की देशभाल करते है, जिसका नाम रघु है।
As ‘Elephant Whisperers’ wins Oscar, tourists visit Tamil Nadu to see ‘Raghu’
शॉर्ट डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘द एलिफेंट व्हिस्पर्स’ के ऑस्कर अवॉर्ड जीतने के बाद मशहूर हुए हाथी ‘रघु’ और ‘अम्मू’ को देखने के लिए बड़ी संख्या में पर्यटक तमिलनाडु के थेप्पकाडु हाथी शिविर में आ रहे हैं। कीर्तिका गोंजाल्विस द्वारा निर्देशित फिल्म में कट्टुनायकन जनजाति के बोम्मन और बेली के जिंदगी को दिखाया गया है, जो हाथी के अनाथ बच्चे की देशभाल करते है, जिसका नाम रघु है।
तिरुवनंतपुरम के सुकुमारन नायर पहली बार थेप्पाकडु हाथी शिविर का दौरा कर रहे हैं। केरल राज्य जल निर्माण विभाग के सेवानिवृत्त इंजीनियर ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, यह पहली बार है, जब मैं थेप्पाकडु हाथी शिविर का दौरा कर रहा हूं, वो भी रघु और अम्मू से मिलने के लिए। अगर मुमकिन हो तो बोमन और बेली के साथ बातचीत करना है।
वह और उनकी पत्नी इंदिरा देवी दोनों सेवानिवृत्त हैं। उन्होंने कहा कि वह बोमन और बेली दोनों के साथ बातचीत करेंगे।
हालांकि, सेवानिवृत्त इंजीनियर ने कहा कि वह थेप्पाकडू में कुछ और दिन रुकेंगे और हाथियों और महावतों के जीवन को समझने की कोशिश करेंगे।
एक अन्य पर्यटक उमेश सिंह मंगलवार सुबह थेप्पकाडू पहुंचे। आईएएनएस से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वह नई दिल्ली के मूल निवासी हैं, लेकिन पिछले दो सप्ताह से एक पर्यटक के रूप में दक्षिण भारत में है। ‘एलिफेंट व्हिस्पर्स’ के ऑस्कर जीतने की खबर सुनकर, वह रघु और अम्मू की एक झलक पाने के लिए थेप्पाकडू शिविर के लिए रवाना हुए।
उमेश सिंह ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा, मैं आज सुबह एलिफेंट सेंक्चुअरी पहुंचा। यह अद्भुत है और मैं बोमन और बेली दोनों से मिलना चाहता हूं। मुझे नहीं पता कि यह संभव है या नहीं, लेकिन मैं यहां शाम तक रुकूंगा और उनसे और हाथियों से भी मिलूंगा।
थेप्पाकडु हाथी शिविर के अधिकारियों ने बताया कि शिविर में कुछ विदेशी पर्यटक भी हैं, जो हाथियों और महावत से मिलना चाहते हैं।
बता दें कि थेप्पाकडू हाथी शिविर एशिया में सबसे पुराना है और 1917 में स्थापित किया गया था। शिविर में वर्तमान में 28 हाथी हैं, जबकि वे जंगली हाथी थे, जो मनुष्यों के लिए समस्याएं पैदा कर रहे थे और इन हाथियों को इस शिविर में पाला जाता है और ‘कुम्की’ हाथियों में बदल दिया जाता है।
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