अग्निपथ योजना के खिलाफ याचिकाओं पर दिल्ली हाईकोर्ट “जिन्हें दिक्कत है वे शामिल न हों

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Agnipath scheme voluntary, those having problem don’t join: Delhi HC

Delhi High Court dismisses review plea challenging CJI Chandrachud appointment
Delhi High Court dismisses review plea challenging CJI Chandrachud appointment

सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए 14 जून को शुरू की गई केंद्र सरकार (Central Government) की योजना अग्निपथ (Agnipath scheme) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिल्‍ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि उनके किस अधिकार का उल्‍लंघन हुआ है. योजना में क्या गलत है? कोर्ट ने कहा कि यदि कोई दिक्‍कत है तो वे इसमें शामिल न हों.

Agnipath scheme voluntary, those having problem don’t join: Delhi HC

दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने केंद्र (Central Government) की अग्निपथ योजना (Agnipath scheme) को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से सोमवार को सवाल किया कि उनके किस अधिकार का उल्लंघन हुआ है और कहा कि यह स्वैच्छिक है तथा जिन लोगों को इससे कोई समस्या है, उन्हें सशस्त्र बलों में शामिल नहीं होना चाहिए. उच्च न्यायालय ने कहा कि भर्ती के लिए अग्निपथ योजना थलसेना, नौसेना और वायुसेना के विशेषज्ञों द्वारा बनाई गई है और न्यायाधीश सैन्य विशेषज्ञ नहीं हैं.

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा, ‘योजना में क्या गलत है? यह अनिवार्य नहीं है…स्पष्ट तरीके से कहूं तो हम सैन्य विशेषज्ञ नहीं हैं. आप (याचिकाकर्ता) और मैं विशेषज्ञ नहीं हैं. इसे थलसेना, नौसेना और वायु सेना के विशेषज्ञों के बड़े प्रयासों के बाद तैयार किया गया है.’ पीठ ने कहा, ‘सरकार ने एक विशेष नीति बनाई है. यह अनिवार्य नहीं है, यह स्वैच्छिक है.’ अदालत ने कहा, ‘आपको यह साबित करना होगा कि अधिकार छीन लिया गया है…. क्या हम यह तय करने वाले व्यक्ति हैं कि इसे (योजना के तहत सेवाकाल) चार साल या पांच साल अथवा सात साल किया जाना चाहिए.’

अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई

उच्च न्यायालय केंद्र की अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. सशस्त्र बलों में युवाओं की भर्ती के लिए अग्निपथ योजना 14 जून को शुरू की गई. योजना के नियमों के अनुसार, साढ़े 17 से 21 वर्ष की आयु के लोग आवेदन करने के पात्र हैं और उन्हें चार साल के कार्यकाल के लिए शामिल किया जाएगा. योजना के तहत, उनमें से 25 प्रतिशत की सेवा नियमित कर दी जाएगी. अग्निपथ की शुरुआत के बाद इस योजना के खिलाफ कई राज्यों में विरोध शुरू हो गया. बाद में, सरकार ने 2022 में भर्ती के लिए ऊपरी आयु सीमा को बढ़ाकर 23 वर्ष कर दिया.

अग्निवीरों के लिए 48 लाख रुपये का जीवन बीमा होगा

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक हर्ष अजय सिंह की तरफ से पेश अधिवक्ता कुमुद लता दास ने कहा कि योजना के तहत भर्ती होने के बाद अग्निवीरों के लिए 48 लाख रुपये का जीवन बीमा होगा, जो पहले के प्रावधान की तुलना में बहुत कम है. वकील ने दलील दी कि सशस्त्र बलों के कर्मी जो भी वेतन-भत्ते पाने के हकदार होते हैं, अग्निवीर को वे केवल चार साल के लिए मिलेंगे. उन्होंने कहा कि अगर सेवा की अवधि पांच साल के लिए होती, तो वे ‘ग्रेच्युटी’ के हकदार होते. वकील ने दलील दी कि चार साल के सेवाकाल के बाद, केवल 25 प्रतिशत अग्निवीरों को सशस्त्र बल में बनाए रखने पर विचार किया जाएगा और बाकी 75 प्रतिशत के लिए कोई योजना नहीं है.

अग्निपथ योजना पर पुनर्विचार करने के लिए कहा जाना चाहिए

वकील ने कहा कि अधिकारियों ने लागत में कटौती के लिए यह योजना तैयार की है, पीठ ने सवाल किया कि सशस्त्र बल ने कहां उल्लेख किया है कि यह लागत में कटौती की कवायद है. जस्टिस प्रसाद ने कहा, ‘उन्होंने कहां कहा है कि यह लागत में कटौती की कवायद है? आप चाहते हैं कि हम अनुमान लगाएं कि यह लागत में कटौती की कवायद है? जब तक वे ऐसा नहीं कहते, आपके बयान का कोई महत्व नहीं है.’ व्यक्तिगत रूप से बहस में हिस्सा लेने वाले एक अन्य याचिकाकर्ता ने कहा कि वह थलसेना से सेवानिवृत्त हो चुके हैं और अब वकालत कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अधिकारियों को अग्निपथ योजना पर पुनर्विचार करने के लिए कहा जाना चाहिए क्योंकि अग्निवीरों को दिया जाने वाला छह महीने का प्रशिक्षण पर्याप्त नहीं है और यह बहुत कम समय है और प्रशिक्षित होना आसान नहीं है. उन्होंने दावा किया कि इस तरह अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करेंगे और कर्मियों की गुणवत्ता प्रभावित होगी.

14 दिसंबर को सुनवाई की अगली तारीख

जब जस्टिस प्रसाद ने कहा ‘फिर इसमें शामिल न हों’, तो याचिकाकर्ता ने कहा, ‘क्या यह जवाब है कि ‘शामिल न हों.’ न्यायाधीश ने कहा, ‘हां.’ एक अन्य याचिकाकर्ता की तरफ से पेश अधिवक्ता अंकुर छिब्बर ने कहा कि सेवा के चार वर्षों में कर्मियों में जुड़ाव की भावना नहीं होगी. उन्होंने कहा कि जो सेवा में बरकरार रहेंगे, उनके पहले चार साल नहीं गिने जाएंगे और उन्हें नए सिरे से शुरुआत करनी होगी. पीठ ने केंद्र से इस पर स्पष्टता की मांग की. जिस पर अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि वह इस पहलू पर निर्देश लेंगी और 14 दिसंबर को सुनवाई की अगली तारीख पर पीठ को सूचित करेंगी.

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