सामान्य मामलों में 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के गर्भ के एबॉर्शन का अधिकार अब तक विवाहित महिलाओं को ही था
Denying safe abortion to single women with pregnancies up to 24 weeks is violative of their reproductive rights, bodily autonomy: SC
SC ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम के नियम 3-B का विस्तार कर दिया है। मैरिटल रेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत रेप में ‘वैवाहिक रेप’ शामिल होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की है कि पतियों ने अगर महिलाओं पर यौन हमला किया तो वह बलात्कार का रूप ले सकता है।
गर्भपात पर सुप्रीम फैसला!
गर्भपात पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच गर्भपात के अधिकार को मिटा दिया है। विवाहित महिला की तरह अविवाहित महिला को भी गर्भपात करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश में सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक महिला की अगल-अलग परिस्थितियां होती हैं। आपदा की स्थिति में एक महिला बच्चा पैदा करने का फैसला जरूर कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि आपातकालीन स्थिति में कोई भी महिला गर्भावस्था पर फैसला ले सकती है कि उसे वह बच्चा चाहिए या नहीं। यह महिलाओं के विशेष अधिकारों के अंतर्गत आता है।
सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के विशेषअधिकारों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर कोई महिला की वैवाहिक स्थिति उसे अनचाहे गर्भ को धारण करने के लिए मजबूर कर रही है तो यह उचित नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि वैवाहिक स्थिति महिला को अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकारी से वंचित नहीं कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी महिला जो कि अविवाहित है उसे भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत यह अधिकार है कि वह 24 हफ्तों के अंदर नियमों के तहत गर्भपात करा सकती है।
आपको बता दें, सामान्य मामलों में 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के गर्भ के एबॉर्शन का अधिकार अब तक विवाहित महिलाओं को ही था।
क्या है मामला?
मैरिटल रेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। याचिका को खुशबू सैफी नाम की महिला ने दायर किया था जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट के खंडित निर्णय को चुनौती दी गई थी। इस मामले में 11 मई को सुनवाई की गई थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में दो जजों ने अलग-अलग विचार प्रकट किए थे।