हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि दोषी पुलिस कर्मी अपनी जेल की सजा काटेंगे। साथ ही अदालत ने सभी पुलिस कर्मियों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया।
1991 Pilibhit fake encounters: HC commutes life sentence of 43 cops to 7 years jail term
उत्तर प्रदेश के 43 पुलिस कर्मियों को एक साथ 7 साल की सजा सुनाई गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 1991 पीलीभीत फर्जी मुठभेड़ मामले में 43 पुलिस कर्मियों को सुनायी गई उम्रकैद की सजा को 7 साल के सश्रम कारावास में बदल दिया है। इस फर्जी मुठभेड़ में 10 सिखों को आतंकवादी बताकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत द्वारा पुलिस कर्मियों को धारा 302 के तहत सुनाई गई सजा को दरकिनार करते हुए कहा कि मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 303 के अपवाद 3 के तहत आता है।
हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि दोषी पुलिस कर्मी अपनी जेल की सजा काटेंगे। साथ ही अदालत ने सभी पुलिस कर्मियों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सरोज यादव की खंडपीठ ने अभियुक्त पुलिस कर्मियों देवेंद्र पांडेय और अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद दिया।
ये है पूरा मामला
12 जुलाई 1991 को नानकमथा पटना साहिब, हुजूर साहिब और अन्य तीर्थ स्थलों की यात्रा करते हुए 25 सिख यात्रियों का जत्था बस से लौट रहा था। पीलीभीत के छाला घाट के पास पुलिस वालों ने बस को रोका और 11 युवकों को उतारकर अपनी बस में बैठा लिया। इनमें से 10 की लाश मिली। वहीं, शाहजहांपुर के तलविंदर सिंह का आज तक पता नहीं चला कि वह कहां हैं।
पुलिस ने इस मामले में पूरनपुर, न्यूरिया और बिलसंडा थाने में 3 अलग-अलग केस दर्ज किए थे। जांच के बाद पुलिस ने फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी। इसके बाद एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 15 मई 1992 को इस केस की जांच सीबीआई को सौंप दी। सीबीआई ने मामले की जांच के बाद बाद 57 पुलिस कर्मियों के खिलाफ सुबूतों के आधार पर चार्जशीट दायर की। अदालत ने 43 पुलिस कर्मियों को इस मामले में दोषी ठहराया