मध्य प्रदेश में भू-माफिया का ‘राज’, करोड़ों की जमीन के वारे न्यारे

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Land mafia in Madhya Pradesh: Misappropriation of land worth crores

Land mafia in Madhya Pradesh: Misappropriation of land worth crores
Land mafia in Madhya Pradesh: Misappropriation of land worth crores

मुआवजे का दावा करने के लिए जमीन और ‘हवाई घरों’ का मालिकाना हक दिखाने को राजस्व रिकॉर्ड से छेड़छाड़ की गई। एक साजिशी गठजोड़ ने पूरी व्यवस्था को अपने शिकंजे में ले रखा है।

Land mafia in Madhya Pradesh: Misappropriation of land worth crores

आंतरिक जांच के बाद रेलवे ने मध्य प्रदेश में 300 करोड़ रुपये के घोटाले की सूचना दी है जिसमें ‘भूतिया’ और फर्जी भू-स्वामी जमीन का मुआवजा लेकर चलते बने। इसके अलावा फर्जी दस्तावेजों के आधार पर कुछ लोगों को बढ़ा-चढ़ाकर मुआवजा भी दे दिया गया।

मध्य प्रदेश के विंध्य क्षेत्र को उत्तर प्रदेश से जोड़ने वाले 541 किलोमीटर लंबे ललितपुर-सिंगरौली रेलवे ट्रैक को 1997-98 में मंजूरी दी गई थी, लेकिन 2016 में ही इसमें तेजी आ सकी जब तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने परियोजना के लिए 6,672 करोड़ रुपए मंजूर किए। उन्होंने उसी साल सीधी रेलवे स्टेशन की नींव भी रखी। यह और बात है कि सात साल बाद भी यह अभी तक तैयार नहीं हो सका है। रेलवे की अप्रैल, 2023 की समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि 450 किलोमीटर ट्रैक के लिए तय भूमि का अधिग्रहण पूरा हो चुका है, सीधी और सिंगरौली के बीच करीब 100 किलोमीटर ट्रैक के भूमि अधिग्रहण और मुआवजा निर्धारण में जमकर हुई गड़बड़ियों की वजह से मामला अटका हुआ है।


फरवरी, 2021 में रेलवे ने मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव (राजस्व) और सिंगरौली के जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर कुर्सा सहित कई गांवों के राजस्व रिकॉर्ड में गड़बड़ियों की ओर उनका ध्यान दिलाया। कुर्सा में 60 में से 27 भूखंडों में गड़बड़ी बताई गई थी। रेलवे ने पत्र में लिखा: ‘(कुर्सा में) इन भूखंडों के मालिक स्थानीय हैं लेकिन जमीन पर दिखाए गए घर बाहरी लोगों के हैं। एक मामले में, जमीन अशोक कुमार कुम्हार की है, लेकिन उनकी संपत्ति पर दिखाए गए 19 घर बाहरी लोगों के हैं। 19 घरों के बदले घर मालिकों को 6.59 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया है। ऐसा क्यों?’

इस साल जुलाई में रेलवे ने मुख्य सचिव को पत्र लिखकर शिकायत की थी कि सिंगरौली जिला प्रशासन रेलवे को पूर्व सूचना दिए बिना और रेलवे प्रतिनिधियों की गैरमौजूदगी में जमीन का सर्वेक्षण और मूल्यांकन कर रहा है। पश्चिम मध्य रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी (निर्माण) मनोज कुमार अग्रवाल कहते हैं, ‘जब भी हमें गड़बड़ी मिली, राज्य सरकार और संबंधित कलेक्टरों को सूचित किया गया।’

पिछले तीन सालों के दौरान दो दर्जन पत्र भेजे गए लेकिन राज्य सरकार ने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया। आखिरकार, इस साल 15 जनवरी को रेलवे ने इस हिस्से पर काम रोक दिया।

दरअसल, सीधी के डीएम अभिषेक सिंह ने 1 अगस्त, 2019 को राज्य सरकार को संभावित ‘घोटाले’ के बारे में सावधान किया था। क्षेत्र के निरीक्षण के दौरान उन्होंने पाया था कि टिन शेड वाली 0.44 एकड़ जमीन के लिए चंदवाही गांव के सीता सिंह को 2.5 करोड़ रुपये का मुआवजा आवंटित किया गया है। कलेक्टरेट में अभिषेक सिंह के साथ काम करने वाले एक अधिकारी के अनुसार उन पर एक वरिष्ठ नौकरशाह द्वारा दबाव डाला जा रहा था कि उस भुगतान को मंजूर कर दें। जब उन्होंने इनकार कर दिया, तो डीएम को एक सप्ताह के भीतर योजना, आर्थिक और सांख्यिकी विभाग और फिर राज्य चुनाव आयोग में स्थानांतरित कर दिया गया। हालांकि उन्होंने रेलवे को इसकी जानकारी दे दी और अंतिम मुआवजा घटाकर 5.2 लाख रुपये कर दिया गया था।

दरअसल, बीजेपी के राज्यसभा सदस्य अजय प्रताप सिंह का आरोप है कि उद्घाटन के दो हफ्ते के अंदर ही सीधी और सिंगरौली के बीच का रूट बदल दिया गया। उनका कहना है कि नया मार्ग आठ किलोमीटर लंबा है जिससे परियोजना में देरी हुई और लागत भी 100 करोड़ रुपये बढ़ गई। ऐसा क्यों किया गया और किसे फायदा पहुंचाने के लिए किया गया, इसकी जांच कराई जानी चाहिए। उन्होंने इस मामले को संसद में उठाया था और रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से उन्हें जो जवाब मिला, उसमें कहा गया था कि बदलाव के पीछे ‘स्थानीय कारण’ थे।

सांसद ने फोन पर बात करते हुए आरोप लगाया कि एक भू-माफिया तंत्र जिसमें मजिस्ट्रेट, तहसीलदार और पटवारियों सहित स्थानीय अधिकारी शामिल थे, ने रेलवे और करदाताओं को करोड़ों रुपये का चूना लगाने की साजिश रची थी। उन्होंने कहा, ‘यह सिंडिकेट इतना ताकतवर है कि उसने ट्रैक के रास्ते को इसलिए बदलवा दिया क्योंकि इसमें वह जमीन जा रही थी जिसे अप्रत्याशी मुनाफे के लिए खरीदा गया था।’

अगस्त, 2023 में राज्यसभा में कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह के एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने बताया कि परियोजना लागत, जो 2016 में 6,672 करोड़ रुपये थी, बढ़कर 8,913 करोड़ रुपये हो गई है।

सिंगरौली जिले के एक व्हिसल ब्लोअर डीपी शुक्ला और उनके 88 वर्षीय पिता पर इस मुद्दे को उठाने पर तीन एफआईआर दर्ज की गईं। छीवा और खोभा गांवों में डी पी शुक्ला की लगभग एक एकड़ जमीन थी जिसके लिए पांच फर्जी लोगों के नाम जोड़कर 1.5 करोड़ का मुआवजा बांट दिया गया। इस फर्जीवाड़े के लिए न्यायिक स्टांप पेपर का इस्तेमाल किया गया था जिसकी शिकायत किए जाने पर बाद में जांच हुई और जून, 2023 में एक स्टांप विक्रेता का लाइसेंस रद्द कर दिया गया।

इस मामले पर भी गौर करना चाहिए। पीडब्ल्यूडी के दैनिक वेतन भोगी राममोहन द्विवेदी (55) को एक एकड़ के प्लॉट और तीन घर के बदले 2.88 करोड़ रुपये का मुआवजा तय हुआ। एक साल बाद वह मृत पाया गया और पुलिस ने निष्कर्ष निकाला कि उसने अपने बेटे की अपनी मर्जी से शादी कर लेने से नाखुश होकर खुदकुशी कर ली थी। रुद्रनारायण द्विवेदी का आरोप है कि उनके पिता की हत्या उन लोगों ने की जो रकम हड़पना चाहते थे। वह जांच की मांग कर रहे हैं।

द्विवेदी के निधन के चार महीने बाद जिला प्रशासन ने पीडब्ल्यूडी के सब-इंजीनियर दधीच सिंह के बेटे समेत उनके तीन करीबी रिश्तेदारों को 2.48 करोड़ रुपये जारी कर दिए। जबकि द्विवेदी के इकलौते बेटे को कुछ नहीं मिला। जब रुद्रनारायण ने जुलाई, 2022 में जबलपुर हाईकोर्ट का रुख किया, तब उन्हें 40 लाख रुपये का भुगतान किया गया। राज्य सरकार ने अभी तक मामले में अदालत के नोटिस का जवाब तक नहीं दिया है। गौरतलब है कि सब इंजीनियर दधीच सिंह को मई, 2022 में प्रतिनियुक्ति पर बीजेपी सांसद अजय प्रताप सिंह के यहां क्लर्क के तौर पर नियुक्त कर दिया गया।

सीधी से मौजूदा बीजेपी सांसद रीति पाठक के अमो गांव स्थित भूखंड को शुरू में ‘टाइपिंग भूल’ के कारण अधिग्रहित किए जाने वाले भूखंडों की सूची से बाहर कर दिया गया था। जब भूखंड को अंततः 2020 में अधिग्रहण के लिए अधिसूचित किया गया, तब उस 0.44 एकड़ के भूखंड का एक ही मालिक निकला- सांसद का मामा। जबकि दिसंबर, 2022 में एक अधिसूचना में भूखंड के आठ अलग-अलग मालिकों को दिखाया गया था। जिन आठ लोगों के नाम जमीन दिखाई गई, उनमें पाठक की मामी, बहन, भाई और भांजे थे।

इससे नाराज पाठक ने फोन पर बात करते हुए कहा, ‘हां, वह मेरा पैतृक घर था लेकिन कोई भी मुझ पर भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप नहीं लगा सकता… जिन लोगों को संदेह है कि मेरी उसमें संलिप्तता है, उन्हें जिला प्रशासन से शिकायत करनी चाहिए और वे जांच कर सकते हैं।’

सीधी से दो बार सांसद रही पाठक को सीधी सीट से 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया है।

सिंगरौली जिले के गिधेर गांव के आदिवासी शंकरलाल बैगा को पता चला कि उनकी 1.75 एकड़ की कृषि भूमि का मुआवजा 72.23 लाख रुपये दिया गया है जो कि उसे बताए गए 10 लाख रुपये के मुआवजे से सात गुना अधिक था। उन्होंने यह भी पाया कि रिकॉर्ड में सात गैर-आदिवासियों की कृषि भूमि पर कागजों में घर बनाए दिखाया गया था।

जब उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की तो प्रशासन ने आनन-फानन में पूरी रकम उनके बैंक खाते में ट्रांसफर कर दी और फर्जी दावेदारों के नाम रिकॉर्ड से हटा दिए। मामला अब भी हाईकोर्ट में लंबित है।

कानून के मुताबिक, आदिवासियों की जमीन जिला कलेक्टर की अनुमति के बिना न तो खरीदी जा सकती है और न ही बेची जा सकती है। वकील योगेश्वर प्रसाद तिवारी, जिन्होंने बैगा सहित ऐसे कई मामले उठाए हैं, कहते हैं, ‘सीधी और सिंगरौली में भ्रष्टाचार का हाल इसी से पता चलता है कि रेलवे ने 541 किलोमीटर की परियोजना के लिए 15,000 से अधिक भूमि मालिकों से जमीन अधिग्रहीत की। बताते हैं कि इनमें से 11,605 लोग तो सिर्फ इन दो जिलों से हैं।

मध्य प्रदेश विधानसभा में उठाए गए सवालों के जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि सीधी में 6,809 और सिंगरौली जिले में 4,796 मुआवजे के दावेदार हैं। तिवारी कहते हैं, ‘अगर सरकार जांच कराए तो इनमें से3-4 हजार दावेदार फर्जी मिलेंगे।’

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